गया में 100 एकड़ में होगी सांवा की खेती, जानिए इसकी खासियत
सांवा, जिसे बार्नयार्ड मिलेट भी कहा जाता है, किसानों के लिए लाभदायक फसल साबित हो रही है। यह एक पोषक अनाज है, जो कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी आसानी से उगाया जा सकता है। बिहार के गया जिले में 100 एकड़ भूमि पर इसकी खेती की तैयारी की जा रही है।
सांवा की पैदावार और मुनाफा
सांवा की खेती से 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अनाज और 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसा मिलता है। इसका चावल 100-120 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 60-70 हजार रुपये तक की बचत होती है।
सरकार कर रही है मोटे अनाज को बढ़ावा
सरकार मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। किसान 15 मार्च तक सांवा और कोदो जैसे अनाज की बुवाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यह सूखा-सहिष्णु फसल है, जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।
गया में बड़े पैमाने पर होगी खेती
बिहार के गया में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और इक्रीसेट के वैज्ञानिक डॉ. राहुल प्रियदर्शी के अनुसार, यह प्राचीन फसल सूखा-प्रतिरोधी होती है और असिंचित क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन देती है। इसे उगाने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे किसानों का खर्च कम होता है।
खेती के लिए उपयुक्त समय और तरीका
- बुवाई का समय: फरवरी-मार्च
- बुवाई विधि: छिटक विधि या रोपाई
- गहराई: 3-4 सेमी
- लाइन की दूरी: 25 सेमी
पशुपालन के लिए भी फायदेमंद
सांवा का भूसा पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोगी होता है। इसमें चावल की तुलना में अधिक पोषक तत्व होते हैं और प्रोटीन की पाचन क्षमता 40% तक होती है
सांवा की खेती किसानों के लिए कम लागत और अधिक मुनाफे का सौदा है। यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। सरकार के समर्थन से इस अनाज की खेती को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे आने वाले समय में यह किसानों के लिए आय का अच्छा स्रोत बन सकता है।